Monday 20 April 2015

वो पहले का गाँव !


डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 


झूले,गीत ,बहार सब ,आम,नीम की छाँव |
हमसे सपनों में मिला ,वो पहले का गाँव ||

सूरज की पहली किरन ,पनघट उठता बोल |
छेड़ें बतियाँ रात की , सखियाँ करें किलोल ||

गगरी कंगन से कहे ,अपने मन की बात |
रीती ही रस के बिना ,बीत जाए रात ||

अमराई बौरा गई , बहकी बहे बयार |
सरसों फूली सी फिरे ,ज्यों नखरीली नार ||

कच्ची माटी ,लीपना ,तुलसी वन्दनवार |
सौंधी-सौंधी गंध से ,महक उठे घर-द्वार ||

बेला भई विदाई की ,घर-घर हुआ उदास |
बिटिया पी के घर चली ,मन में लिए उजास ||

सोहर बन्ने गूँजते ,आल्हा ,होली गीत |
बजे चंग मस्ती भरे ,कण-कण में संगीत ||

संध्या दीप जला गई ,नभ भी हुआ विभोर |
उमग चली गौ वत्सला ,अपने घर की ओर ||

बहकी-बहकी सी पवन ,महकी-महकी रात |
नैनन-नैन निहारते ,तनिक हुई ना बात ||

नींद खुली ,अँखियाँ हुईं ,रोने को मजबूर |
लेकर थैली ,लाठियाँ ,गाँव नशे में चूर ||१०

जात-धर्म के नाम पर ,बिखरा सकल समाज |
एक खेत की मेंड़ पर , चलें गोलियां आज ||११

कैसे मैं धीरज धरूँ ,दिखे कोई रीत |
कैसे पाऊँगी वही ,सावन ,फागुन , गीत ||१२

दिए दिलासा दे रहे ,रख मन में विश्वास |
हला! हिम्मत हारिए ,जलें भोर की आस ||१३

तम की कारा से निकल ,किरण बनेगी धूप |
महकेगी पुष्पित धरा ,दमकेगा फिर रूप ||१४

चित्र गूगल से साभार 

21 comments:

  1. प्रत्येक दोहा माधुर्य से परिपूर्ण है। काव्य का मुख्य गुण है संवेदना । सामाजिक सरोकार सर्वोपरि है ; लेकिन जिस मानव के बल पर वह साधा जाता है , उसकी उपेक्षा महत्त्वपूर्ण काव्य सृजन नहीं कर सकती । ज्योत्स्ना जी के इन दोहों में दोनों हैं -सामाजिक सरोकार भी और जन साधारण भी , जिसके बल पर हमारा समाज सुख -स्वप्न देखता रहा है।

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    1. आपकी सहृदय उपस्थिति सदैव मेरी प्रेरणा रही है ,मेरे लेखन को परिमार्जन , प्रोत्साहन देने के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ | स्नेहाशीष रखियेगा |

      सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

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  2. दिए दिलासा दे रहे ,रख मन में विश्वास |
    हला! न हिम्मत हारिए ,जलें भोर की आस ||१३

    तम की कारा से निकल ,किरण बनेगी धूप |
    महकेगी पुष्पित धरा ,दमकेगा फिर रूप ||१४

    वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
      सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  3. दोहों के माध्यम से बदलते हुए गाँवों की लाज़वाब और सटीक तस्वीर खींची है...बहुत उत्कृष्ट और सार्थक प्रस्तुति...

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
      सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  4. Very nice post.. & welcome to my new blog post

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
      सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  5. सूक्ष्म संवेदनाओं की सहज अभिव्यक्ति.. समय के साथ ग्रामीण जीवन और परिवेश भी बदलता जा रहा है., उसका रूप भी बदल रहा है. यादों में बसे उस गाँव की याद ताज़ा करवा दी आपने, सादर

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
      सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  6. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
      सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

      ज्योत्स्ना शर्मा

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  7. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  8. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  9. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |
    सदैव इसी स्नेह भाव की कामना के साथ

    ज्योत्स्ना शर्मा

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  10. सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
    शुभकामनाएँ।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

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  11. बहत ही सुन्दर भाव लिए हुए हैं सभी दोहे | बचपन के दिन याद दिला दिये |

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    1. आपकी सुन्दर , प्रेरक उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ |

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  12. सुन्दर भाव लिए हुए हैं सभी दोहे

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  13. सहृदय उपस्थिति के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद संजय जी |

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