Thursday, 12 May 2022

174-झूम- झूमकर नाचे गाए

 

कहमुकरियाँ : डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 

1
कड़क ज़रा पर लगता मीठा
उजला-उजला चाँद सरीखा
पूजन , मंगल , सुख की आशा
क्या सखि साजन ,नहीं बताशा !
2
बड़े प्यार से देता पानी
हो गई उसकी बात पुरानी
पतली गरदन पेट है मोटा
क्या सखि साजन, ना सखि  लोटा !
3
जब भी लिपटे बहुत सुहाए
सारी सर्दी दूर भगाए
मुझको तो कायल कर डाला
क्या सखि साजन, नहीं दुशाला !
4
सब पर रौब उसी का छाया
जग में उसकी अद्भुत माया
सभी सँभालें उसको भैया
क्या सखि साजन, नहीं रुपैया !
5
ना चाहो पर मिल ही जाए
बच्चे हों या बूढ़ा पाए
सबक सिखाए सबको चोखा
क्या सखि शिक्षक, ना सखि धोखा !
6
जब से वह जीवन में आया
लगे धूप भी मुझको छाया
बरखा से भी मुझे बचाता
क्या सखि कमरा, ना सखि छाता !
7
जब भी पास हमारे आए
ज्ञान भरी बातें बतलाए
दुनिया भर का रखे हिसाब
क्या सखि साजन, नहीं किताब  !
8
जब भी दूर ज़रा हो जाए
मार सीटियाँ मुझे बुलाए
किसकी हिम्मत देखे छूकर
क्या सखि  साजन, ना सखि कूकर  !
9
मस्त हवा मस्ती में झूमे
झट मेरे गालों को चूमे
झुककर मेरी मूँदें पलकें
क्या सखि सजना , ना सखि अलकें।
10
कभी बताता पतली , मोटी
हूँ कितनी लम्बी या छोटी
बहस करूँ ना जाए जीता
क्या सखि साजन, ना सखि फीता !
11
देखा-देखी सीटी मारे
कभी राम का नाम उचारे
कितना खुशदिल कभी न रोता
क्या सखि साजन ?
ना सखि तोता ।
12
बने बड़ों का कभी सहारा 
उसने सब दुष्टों को मारा 
पतली, लम्बी है कद-काठी
क्या सखि साजन  ?
ना सखि  लाठी।
13
घन गरजें तो मस्ती छाए
झूम-झूमकर नाचे जाए 
खूब पुकारे करता शोर 
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि मोर 
14
दिन भर ठहरे निपट अकेला
पास न रुपया, पैसा , धेला
उजली चादर देता बुनकर
क्या सखि साजन, ना सखि दिनकर।
15
जैसी , जिसकी ,रखता संगत
वैसी ही हो उसकी रंगत
करना चाहे बस मनमानी
क्या सखि साजन, ना सखि पानी।
16
दिनभर जाने कित छुप जाए
दिवस ढले झट मिलने आए
नैन मारकर करे इशारा
क्या सखि साजन, ना सखि तारा।
17
रोटी, सब्जी ,दाल बनाऊँ
सबसे पहले उसे जिमाऊँ
वो मन मोहे, लेउँ बलैया
क्या सखि साजन?
ना सखि गैया।
18
गीत बड़ी मस्ती में गाऊँ
संग मैं उसके उड़ती जाऊँ
वह पल मुझसे जाए न भूला
क्या सखि साजन?
ना सखि झूला।
19
करता पूरी पहरेदारी
वो मुझको मैं उसको प्यारी
नाटा, मोटा , है कुछ काला
क्या सखि साजन?
ना सखि ताला।
20
रहे अकड़कर शान निराली
मैं उसको देती हूँ ताली
सारे घर का है रखवाला
क्या सखि  साजन ?
ना सखि ताला।

- डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा 



















9 comments:

  1. गीत बड़ी मस्ती में गाऊँ.....

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  2. वाह बहुत अच्छा काम। बधाई

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  3. वाह बेहतरीन गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती प्रस्तुति ज्योत्स्ना जी

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    1. आपकी प्रतिक्रिया नवलेखन की प्रेरणा है, हृदय से आभार संजय जी 💐🙏

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  4. वाह! बहुत सुंदर! बधाई और आभार!!!

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    1. प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका 🙏💐

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  5. आपकी सभी कहमुकरियां अच्छी हैं। और पांचवीं तो लाजवाब है।

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  6. हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏

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