Tuesday 18 June 2013

पतित पावनी तुम ....

."श्री गंगा दशमी "पर ...सभी भूलों के लिए क्षमा याचना ...और ....दया दृष्टि की कामना के साथ ...जय माँ गंगे !!
डॉ.ज्योत्स्ना शर्मा 

पतित पावनी तुम
मैं सादा सा पानी 
माँ गंगे, मगर 
एक अपनी कहानी

उतरी धरा पर 
कभी शुभ्रवसना 
अमृतमयी
मधु रससिक्त रसना 
पावन, सरस 
चाहें सृष्टि सजानी

वरद हस्त शिव का 
कठिन भी सरल है 
सीख लिया परहित 
पीना गरल है 
जन्म से मरण तक 
शरण, गत न जानी 

कभी रौद्र रूपा 
कभी क्षीणतोया 
सदा वत्सला माँ!
कलुष जन का धोया 
बही अनवरत, 
पाया खारा -सा पानी 

तेरे कोप से माँ 
जगत ये डरे 
वरदायिनी क्यूँ 
दया न करे 
क्षमा कर मेरी 
भूल जानी-अजानी 

पतित पावनी तुम 
मैं सादा-सा पानी 
माँ गंगे, मगर 
एक अपनी कहानी|
........०.........

8 comments:

  1. bahut behtareen... !! ganga dashahra ki shubhkamnayen...

    ReplyDelete
  2. hriday se dhanyawaad ....Mukesh Kumar Sinha ji

    saadar
    jyotsna sharma

    ReplyDelete
  3. पतित पावनी तुम
    मैं सादा-सा पानी
    माँ गंगे, मगर
    एक अपनी कहानी|

    आह ! इतनी सादगी से इतनी बड़ी साम्यता ? बहुत सुन्दर ज्योत्सना जी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. मेरी पंक्तियों के मर्म को स्पर्श करती आपकी प्रतिक्रिया सुखकर है सुशीला जी ..बहुत आभार !सादर
      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete
  4. पतित पावनी तुम
    मैं सादा-सा पानी
    माँ गंगे, मगर
    एक अपनी कहानी|

    वह बहुत ही अर्थपूर्ण , सुंदर भाव, बहुत बहुत शुभकामनाये

    ReplyDelete
    Replies
    1. ह्रदय से आभार...Shorya Malik ji

      saadar
      jyotsna Sharma

      Delete
  5. मैं सादा-सा पानी
    माँ गंगे, मगर
    एक अपनी कहानी|

    .......... बहुत सुन्दर ज्योत्सना जी !

    संजय भास्‍कर
    शब्दों की मुस्कुराहट
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

    ReplyDelete
    Replies
    1. सकारात्मक उपस्थिति के लिए ह्रदय से आभार संजय जी !!

      ज्योत्स्ना शर्मा

      Delete