दिशा
-दिशा हो धवल
(कुण्डलिया)
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
नारी ही जब बोलकर ,अपना मोल लगाय ।
बेदर्दी बाजार में , बिना मोल बिक जाय॥
बिना मोल बिक जाय ,घटे मर्यादा ऐसे ।
हो पूनम का चाँद,
गहन में विपदा जैसे ॥
पाए अपना मान , चाँद फिर चमके भारी ।
तज मर्यादा, चैन,
कभी क्या पाए नारी ?
2
दानी बन सब कुछ दिया ,जल,भू भेंट अपार ,
पवन,पुष्प ,धन-धान्य से ,सुखी रहे संसार |
सुखी रहे संसार , मिले जैसे को तैसा ,
मुख मोहक मुसकान , नचाएं नट के जैसा |
कर लें प्रभु स्वीकार ,क्षमा कर सब नादानी ,
देकर मन का दान , बने हैं हम भी दानी ||
पवन,पुष्प ,धन-धान्य से ,सुखी रहे संसार |
सुखी रहे संसार , मिले जैसे को तैसा ,
मुख मोहक मुसकान , नचाएं नट के जैसा |
कर लें प्रभु स्वीकार ,क्षमा कर सब नादानी ,
देकर मन का दान , बने हैं हम भी दानी ||
3
इक रोटी से हाथ की ,मुँदरी पूछे बात ।
तू क्यों फूली -सी फिरे ,जले सुकोमल गात ॥
जले सुकोमल गात ,अंत निश्चित है तेरा ।
पर छुटकी के थाल,
लगाए हँस कर फेरा ॥
दे मुख को मुस्कान ,उम्र तेरी यह छोटी ।
जीवन का सन्देश ,सुनाती है इक रोटी ॥
4
राजनीति का नीति से ,यूँ रिश्ता अनमोल ।
इक वाणी प्रपंच दिखे ,दूजी बोले तोल ।
दूजी बोले तोल ,करे नित परहित सब का ।
सम दृष्टि समभाव ,रखे है मन में रब का॥
भले करें सब गान
,नीति पावन प्रतीति का
छोडें त्याग-विचार ,गुणीजन राजनीति का ।।
5
भूले से भगवान ने ,मन में किया विचार ।
खुद रह कर फिर साथ में ,देखें यह संसार ।।
देखें यह संसार ,यहाँ कैसी है माया ।।
किया भला क्या भेंट ,भक्त ने क्या -क्या पाया ।।
चले उठाने मुकुट ,मुरलिया जब झूले से ।
कुछ न आ सका हाथ ,खड़े हैं अब भूले- से ॥
6
राधा की पायल बनूँ,
या बाँसुरिया ,श्याम ,
दोंनों के मन में रहूँ,
इच्छा यह अभिराम ।
इच्छा यह अभिराम ,संग राखें बनवारी ,
दो बाँसुरिया देख ,
दुखी हों राधा प्यारी ।
हो उनको संताप ,
मिलेगा सुख बस आधा ,
कान्हा के मन वास ,
चरण में रख लें राधा ।
7
जीवन में उत्साह से ,सदा रहें भरपूर ,
निर्मलता मन में रहे ,
रहें कलुष से दूर ।
रहें कलुष से दूर ,दिलों में कमल खिले हों ,
हों खुशियों के हार ,तार से तार मिले हों ।
दिशा-दिशा हो धवल ,धूप आशा की मन में ,
रहें सदा परिपूर्ण ,उमंगित इस जीवन में ।।
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