Tuesday, 2 October 2012

4-सपने होम हुए


माहिया
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
कल बात कहाँ छोडी़
सच तक जाती थी
वो राह कहाँ मोडी़ ।
2
नस नस में घोटाला
तन उनका उजला
पर मन कितना काला ।
3
कैसे हालात हुए
अब विख्यात यहाँ
श्री मन 'कुख्यात' हुए ।
4
कट जा तम-कारा
खोलो वातायन
मन में हो उजियारा ।
5
दो औ' दो पाँच नहीं
कहना है कह दे
अब सच को आँच नहीं ।
6
वो पल कब आएँगें
मुदित मना पंछी
जब फिर से गाएँगें
7
हम ऐसे मोम हुए
कल चौराहे पर
कुछ सपने होम हुए ।
-0-

5 comments:

  1. कट जाए तम-कारा
    खोलो वातायन
    मन में हो उजियारा ।

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  2. बहुत लाजवाब हैं माहिए ...
    कुछ शब्दों का बंधन और गज़ब की बात ...

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