माहिया
डॉ ज्योत्स्ना शर्मा
1
कल बात कहाँ छोडी़
सच तक जाती थी
वो राह कहाँ मोडी़ ।
2
नस नस में घोटाला
तन उनका उजला
पर मन कितना काला ।
3
कैसे हालात हुए
अब विख्यात यहाँ
श्री मन 'कुख्यात'
हुए ।
4
कट जाए
तम-कारा
खोलो वातायन
मन में हो उजियारा ।
5
दो औ' दो
पाँच नहीं
कहना है कह दे
अब सच को आँच नहीं ।
6
वो पल कब आएँगें
मुदित मना पंछी
जब फिर से गाएँगें ।
7
हम ऐसे मोम हुए
कल चौराहे पर
कुछ सपने होम हुए ।
-0-
कट जाए तम-कारा
ReplyDeleteखोलो वातायन
मन में हो उजियारा ।
बेहतरीन रचना 👌
ReplyDeletebahut bahut aabhaar anita ji
Deleteबहुत लाजवाब हैं माहिए ...
ReplyDeleteकुछ शब्दों का बंधन और गज़ब की बात ...
haardik dhanyawad aadraniiy .
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