डॉ ज्योत्स्ना
शर्मा
1
अकेली चली
हवा मन उदास
कितनी दुखी हुई
साथी जो बने
चन्दन औ'
सुमन
सुगंध सखी हुई ।
2
मन से छुआ
अहसास से जाना
यूँ मैंने पहचाना
मिलोगे कभी
इसी आस जीकर
मुझको मिट जाना ।
3
बूँद बूँद को
समेट कर देखा
सागर मिल गया
मैं सींच कर
खिला रही कलियाँ
चमन खिल गया ।
4
जीवन-रथ
विश्वास प्यार संग
चलते दो पहिये
समय -पथ
है सुगम ,दुखों की
बात ही क्या कहिए ।
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