1.
वही बस वही तो उजालों में आए
कि, जिसने अँधेरों में दीपक जलाए ।
ये रस्ता कहाँ से कहाँ जा रहा है
जिसे खुद पता हो वही तो बताए ।
गिरा बिजलियाँ आशियाने पे मेरे
वो पूछें हुआ क्या है बैठे-बिठाए ।
इरादों का उनके पता ही चला जब
रुलाकरके हमको वो खुद मुसकुराए।
करे माफ रब भी सुबह का जो भूला
ढले शाम जब अपने घर लौट आए
सरल है बहुत बात पर बात कहना
सही है तभी, काम करके दिखाए ।
2.
नभ को रंग बदलते देखा
सूरज उगते-ढलते देखा ।
जीवन-पथ पर पथिकजनों को
गिरते और सँभलते देखा ।
जिसका कोई मोल नहीं ,वह
सिक्का खूब उछलते देखा ।
उजले-उजले परिधानों में
अँधियारों को पलते देखा ।
जिनके सिर औ' पैर नहीं थे
उन बातों को चलते देखा ।
बेबस आँखों के दरिया में
इक तूफान मचलते देखा।
तनिक ताप से हिमखंडों को
धीरे-धीरे गलते देखा ।
डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना रविवार २४ अक्टूबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर नमस्कार श्वेता जी,
Deleteरचना को 'पाँच लिंकों का आनन्द' में स्थान देने के लिए हृदय से आभारी हूँ 🙏
सुन्दर
ReplyDeleteबाहर-बहुत आभार आदरणीय 🙏
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका 🙏
Deleteदोनों ही ग़ज़लें क़ाबिल-ए-दाद हैं। ख़ास तौर पर पहली ग़ज़ल तो लाजवाब है।
ReplyDeleteबहुत-बहुत आभार आपका 💐🙏
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteहृदय से आभारी हूँ अनुराधा चौहान जी 💐🙏
ReplyDeleteवाह... क्या कहने शानदार सृजन के लिए हार्दिक बधाई सखी🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹👌👌👌👌
ReplyDeleteहृदय से आभार सुनीता जी 🌷🙏🌷
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